Sunday, March 7, 2010

'खामोशी..'

...

"खामोशी..
फिर झगड़ आई..
मुकद्दर से..

कैसा खंज़र है..
चाहत का..
ना खूं का निशां..
ना रवानी का काज़ल..!"

...

4 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

Mithilesh dubey said...

सुन्दर रचना लगी ।

Unknown said...

बेहद सुन्दर रचना .

विकास पाण्डेय
www.विचारो का दर्पण.blogspot.com

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद मिथिलेश जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद विकास जी..!!