Wednesday, March 10, 2010
' पथिक..'
...
"रुक कर..
थक कर..
लू के थपेड़ों से..
विफल नहीं होंगे..
जिस पथ पर..
बढ़ें हैं..
'स्वप्न' कभी..
निष्फल नहीं होंगे..
पथिक..
चलता रहे..
बढ़ता रहे..
कठिनाइयाँ मिलें..
या चुनौतियां..
चुभती हों..
शीशे की
ऊँचाईयाँ..
'प्रियंकाभिलाषी' का चरित्र..
सदा निखरता रहे..
पथिक..
चलता रहे..
बढ़ता रहे..
शंखनाद की गूँज..
दिनकर की भभूत..
उमंग मलती रहे..
तरंग पलती रहे..
पथिक..
चलता रहे..
बढ़ता रहे..!"
...
*इस चित्र का श्रेय हमारे मित्र, श्री ओमेन्द्र जी, को जाता है..!! यह उनके अद्भुत खजाने का एक अमूल्य रत्न है..!! धन्यवाद मित्र..!!
4 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
शानदार रचना ,अच्छा संदेश ।
बस एक संसोधन की गुंजाइश है- शंकनाद को शंखनाद कर दीजिये
धन्यवाद अजय कुमार जी..!! हमारी त्रुटी की तरफ ध्यान आकर्षित करने का..!!
बहुत-बहुत धन्यवाद..!!
inspiring very inspiring....reminds me in some way of Atalji's poem......
Thnxx so much..Gautam Sir..!!!
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