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Thursday, March 18, 2010
'कलाई..'
...
"रवानी का जोश..
भिगो गया..
रूह को..
भीड़ में..
तन्हा छोड़ गया..
जुर्म था..
फ़क़त इतना..
बे-इन्तिहाँ..
बेख़ौफ़..
आफताब कसमसाया था..
गेसुओं की नरम कलाई से..!"
...
2 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
Udan Tashtari
said...
बढ़िया!
March 18, 2010 at 2:57 PM
M VERMA
said...
गेसुओं की नर्म कलाई'
वाह क्या उपमा है
बहुत सुन्दर
March 18, 2010 at 7:16 PM
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