सत्य उद्घाटित किया है आपनेसुन्दर रचना
प्रश्न बडा है और ..सामने कटघरे मेअम सारा समाज है ....बहुत अच्छी अभिवयक्ति अजय कुमार झा
अंतरात्मा को छु गयी आपकी ये रचना ...बहुत बढियाँ
आज के ज़माने के आत्मा को झकोड़ता हुआ प्रश्न । सुन्दर रचना ॥
अति सुंदर...सुघड़ता से पिरोये शब्दों में स्त्री पीड़ा की अत्यंत मार्मिक अभिव्यक्ति है.
मार्मिक अभिव्यक्ति अच्छा प्रश्न उठाया है आपने लेकिन शायद इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं " आखिर कब मिटेगा ये जुल्म-ओ-सितम ! "
धन्यवाद वर्मा जी..!!
धन्यवाद संजय भास्कर जी..!!
धन्यवाद अजय झा जी..!!
धनयवाद दीपायन जी..!!
धनयवाद विजयप्रकाश जी..!!
धन्यवाद मै'म..!!
sundar prastutisatik chitran..kamal ka shabd sayam.thanks
really a very good poem.........touching.........
धन्यवाद गौतम जी..!!
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सत्य उद्घाटित किया है आपने
सुन्दर रचना
प्रश्न बडा है और ..सामने कटघरे मेअम सारा समाज है ....बहुत अच्छी अभिवयक्ति
अजय कुमार झा
अंतरात्मा को छु गयी आपकी ये रचना ...बहुत बढियाँ
आज के ज़माने के आत्मा को झकोड़ता हुआ प्रश्न । सुन्दर रचना ॥
अति सुंदर...सुघड़ता से पिरोये शब्दों में स्त्री पीड़ा की अत्यंत मार्मिक अभिव्यक्ति है.
मार्मिक अभिव्यक्ति अच्छा प्रश्न उठाया है आपने
लेकिन शायद इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं
" आखिर कब मिटेगा ये जुल्म-ओ-सितम ! "
धन्यवाद वर्मा जी..!!
धन्यवाद संजय भास्कर जी..!!
धन्यवाद अजय झा जी..!!
धनयवाद दीपायन जी..!!
धनयवाद विजयप्रकाश जी..!!
धन्यवाद मै'म..!!
sundar prastuti
satik chitran..kamal ka shabd sayam.
thanks
really a very good poem.........touching.........
धन्यवाद गौतम जी..!!
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