Sunday, March 28, 2010
'फौलाद की फाहें..'
...
"बहुत सहमी सी हैं..आहें मेरी..
हर वक़्त उलझती हैं..राहें मेरी..१
जब भी चलता हूँ..बाँध के कफ़न..
बारहां..जकड़ लेती हैं..निगाहें मेरी..२
ना तन्हा..ना बेबस..है जुस्तजू..
फ़क़त..अरमानों से जूझती हैं..बाहें मेरी..३
थक के बैठ जाऊं..वो पत्थर नहीं..
रगों में बहती..फौलाद की फाहें मेरी..४..!"
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ग़ज़ल..
11 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
बहुत ही अच्छा लिखा........."
धन्यवाद अमृतघट जी..!!
फौलाद की फाहें,
वाह क्या कल्पना है
धन्यवाद संजय भास्कर जी..!!
धन्यवाद वर्मा जी..!!
सहमी आहें...अरमानों से जूझना...फ़ौलाद की फ़ाहें...बहुत सुंदर उपमायें दी है.
थक के बैठ जाऊं वो पत्थर नहीं
रगों में बहती फौलाद की फाहें मेरी
वाह ....बहुत खूब ......!!
very good...........
धन्यवाद विजयप्रकाश जी..!!
धन्यवाद हरकीरत 'हीर' जी..!!
धन्यवाद गौतम सर जी..!!
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