Wednesday, March 3, 2010
'लफ्ज़ बिखरे रहे..'
...
"लफ्ज़ बिखरे रहे..
अरमां सुलगते रहे..
आँसू सिमटे रहे..
खूं के कतरे जमे रहे..
कलम की स्याही भी..
सूख गयी..
ज़ख्मों को हवा दो कुछ..
नासूर झलकें..
रूह से अब..
आज फिर..
अधूरी रह गयी..
मेरी कहानी..
मेरा सामान..
सच..
लफ्ज़ बिखरे रहे..
दराज़ में..
शब भर..!"
...
12 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
वाह-वाह-वाह , क्या कहूं , बेहतरीन लगी ये रचना।
बहुत खूब । सुन्दर कविता । बधाई स्वीकारे ।
bhetreen.....prastuti
वाह!! उम्दा रचना!!!
sundar rachna
badhai
amazing workkkk...
धन्यवाद मिथिलेश जी..!!
धन्यवाद दीपायन जी..!!
धन्यवाद देवेश प्रताप जी..!!
धन्यवाद उड़न तश्तरी जी..!!
धन्यवाद अरशद अली जी..!
Thnxx Q2..!!
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