Sunday, November 6, 2011
'नज़र-ए-महताब..'
...
"गुज़रतीं हैं साँसें..
यादों के गलियारे से..
जब कभी..
वफ़ा के साये..
झाँकते हुये..
छू जाते हैं..
अफ़साने कई..
वक़्त के पहिये..
लगाते हैं..
यकीं के तम्बू..
इठलाती पुरवाई..
लूटाती है..
साज़ कई..
ना सज़ा मिले..
मोहब्बत की कभी..
कुछ अल्फ़ाज़ यूँ भी..
नज़र-ए-महताब..
कूचा-ए-यार..!!"
...
Labels:
दास्तान-ए-दिल..
12 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
दिल को छूती पंक्तिया..
Bahut Sundar....
www.poeticprakash.com
वाह! बहुत उम्दा....
सादर...
उम्दा
खुदा करे ...ये यकीन के तम्बू....यूँ ही खड़े रहे...हमेशा !!
bahut hi shandar parstuti....
jai hind jai bharat
यादों के गलियारे से बहुत उम्दा रचना निकली है.
बहुत बधाई इस सुंदर अभिव्यक्ति के लिये.
बहुत हि उम्दा रचना|
धन्यवाद प्रकाश जैन जी..!!
धन्यवाद संजय मिश्रा 'हबीब' जी..!!
धन्यवाद रचना दीक्षित जी..!!
धन्यवाद चन्दन जी..!!
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