Wednesday, December 21, 2011
'दहलीज़-ए-फ़िरदौस..'
...
"क्यूँ परवाह किये जाते हो..
मेरी तन्हाई को बर्बाद किये जाते हो..
ना आया करो..हो पाबन्द..
रूह की परतें क्यूँ खोले जाते हो..
कर कुछ करम..ए-हमनवां..
ना आये ख्वाइश ज़ुबान पे..
दहलीज़-ए-फ़िरदौस मुमकिन कहाँ..
ख्वाब-ए-आशियाना सजाए जाते हो..!!"
...
Labels:
रूमानियत..
2 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
ख्वाहिशें जुबां पे जब आयीं वो आलम याद रखना
आँखों से जो बरसा था कभी वो सावन याद रखना
मिले थे जहां हम दोनों बस वो आँगन याद रखना लिपटे थे तुम बेतकल्लुफ हो वो दामन याद रखना
धन्यवाद दी..!!
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