Thursday, April 5, 2012

'मय्यत..'

...

"रिसती रही रूह..
बेबस तकता रहा..
मंज़र-ए-बर्बादी..
रिवायत-ए-मोहब्बत..

ना आँसू बहे..
ना आह निकली..
मय्यत मेरी सूखी रही..!!"


...

3 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

संजय भास्‍कर said...

अच्‍छे शब्‍द संयोजन के साथ सशक्‍त अभिव्‍यक्ति।

संजय भास्कर
आदत....मुस्कुराने की
http://sanjaybhaskar.blogspot.com

Nidhi said...

मोहब्बत हुई..उसके नतीजे हैं सब.

Kailash Sharma said...

बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति...