Thursday, May 24, 2012

'वो भरी-दोपहर..'




...

"प्यासा दरिया..
पत्तों की सरसराहट..
खामोश दरख्त..
घना जंगल..

स्याह जज़्बात..
मुलायम एहसास..

नर्म साँसें..
सुर्ख होंठ..
वस्ल-ए-जिस्म..

'ऑलिव ओइल'..
चन्दन-लेप..

उफ़..
क्या कहर ढाता है..
'वो भरी-दोपहर' का प्यार..
है न..
ए-राज़दां..!!"

...

7 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

M VERMA said...

यकीनन कहर ढाता है

Rajesh Kumari said...

मन के भावों को अच्छे बिम्ब में ढाल कर प्रस्तुत की गई सुन्दर अभिव्यक्ति

Anamikaghatak said...

kamal ka lekhan....gagar me sagar

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद एम वर्मा जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद मयंक साब..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद राजेश कुमारी जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद एना जी..!!