Friday, August 31, 2012
'जिद..'
...
"जिद है हमारी..
सूरज चाहिए अब..
तारे की पच्छी..
यादों का मौसम..
गुलमोहर की आगोश..
रेत के घरोंदें..
सरसों के खेत..
बैलगाड़ी की सवारी..
वो कच्चे आम..
वो मीठी इमली..
वो सौंधी मिटटी..
होली के रंग..
रामलीला का रावण..
जन्माष्टमी का मेला..
काका की जलेबी..
ताऊ के लड्डू..
चाचा का वो..
मलाई वाला दूध..
काकी का हलवा..
चाची का अचार..
ताई के गुँजे..
क्या दे सकोगे..
मेरा गुजरा बचपन..
वो खिलखिलाती हँसी..
सावन के झूले..
माँ का आँगन..
मिश्री-सी लोरी..!"
...
Labels:
स्वच्छंद पंछी..
3 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
ऐसी ज़िद जिसमें सभी बातें प्पुरी नहीं हो सकतीं ....
Wah, bahut khoob:-)
धन्यवाद प्रकाश जी..!!
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