Thursday, September 27, 2012
'फरेबी व्यापार..'
...
"क्या ह्रदय बिलखता नहीं..
स्वयं पर अत्याचार से..
क्या लहू खौलता नहीं..
क्षण-क्षण के संहार से..
क्या स्मृति क्षीण होती नहीं..
नृशंस व्यवहार से..
क्या अंतरात्मा चोटिल होती नहीं..
जघन्य प्रचार से..
कहो, कब मिलेगा विराम..
फरेबी व्यापार से..!!"
...
Labels:
ज्वलनशील-कथन..
2 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
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कहो कब मिलेगा विराम
फ़रेबी व्यापार से …
आपके सारे सवाल सोचने को विवश करने वाले हैं
प्रियंका जी !
अच्छी रचना है …
आपकी कई रचनाएं जो पिछले दिनों नहीं पढ़ पाया … आज कुछ देखी … … …
सबके लिए साधुवाद !
शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
धन्यवाद राजेन्द्र स्वर्णकार जी..!!
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