Sunday, May 12, 2013

'जिस्म की आँच..'



...

"टपकती..
छनती..
साँसों की तार से..
मोहब्बत की चाशनी..

पकाया बहुत देर..
जिस्म की आँच पर..

रूह की तासीर बदल गयी..
तेरी इक छुअन से..

लज्ज़त ज़ुबां पर..
रेज़ा-रेज़ा लुफ़्त..
सलीका-ए-तपिश..
लब पे पैबंद दरिया..

अहह..
रूहानी सफ़र..
इक..
तेरा कूचा..!!!"

...

6 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

Rajendra kumar said...

बहुत ही सुन्दर सटीक रचना,आभार.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

रूहानी सफर ..... बहुत सुंदर रचना ।

Yashwant R. B. Mathur said...

लाजवाब

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद राजेंद्र कुमार जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद संगीता आंटी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद यशवंत माथुर जी..!!