Tuesday, May 21, 2013
'आवारा वज़ूद..'
...
"रिश्तों का बोझ यूँ भी उठाते थे हम..तेरे मिलने के बाद जीने लगे थे..!! तुम्हें जाना था चले जाते..क्यूँ नापे फ़क़त जिस्म के रेशे.. रेज़ा-रेज़ा छिल गयी रूह और तुम्हें मुझसे बाबस्ता ना रहा.. क्यूँ इतने करीब लाये कि साँसें भूल गयीं चलने, बिन तेरे..!!!
किसी सज़ा से डरता नहीं..तेरी ख़ामोशी चीर चुकी रग-रग.. स्याह बेज़ुबां आवारा वज़ूद..!!!!"
...
---कुछ फैसले आपके हाथ में नहीं होते, बस निभाने पड़ते हैं..जैसे..जीना तुम बिन..
Labels:
कहानी..
2 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
जैसे जीना तुम्हारे बिन ...
उम्दा ...
धन्यवाद दिगम्बर नासवा जी..!!
Post a Comment