Wednesday, March 5, 2014
'बेशुमार परतें..'
...
"मेरे दर्द को सींचा है तुमने..
जब-जब स्याह था आकाश..सितारों को बिखेरा तुमने..!! जब-जब था जाड़ा..बाँहों का कंबल ओढ़ाया तुमने..!! जब-जब तल्ख़ थी जेठ की दोपहर..गुलमोहर का स्पर्श लुटाया तुमने..!! जब-जब बेसहारा था बूंदों का काफ़िला..जिस्म का छाता बनाया तुमने..!! जब-जब रेज़ा-रेज़ा हुआ था वज़ूद..अलाव साँसों का जलाया तुमने..!!
आज जब उतार फेंकीं हैं बेशुमार परतें..फ़ासले दरमियां क्यूँ फ़ैसले करने लगे..??"
...
--क्यूँ चले गए..आप होते तो मेरे दर्द को नया आयाम देते.. मेरे आँसुओं को नया मंज़र.. और बेबाक ख्वाहिशों को खंज़र.. मिस्ड यूँ बैडली.. :(
Labels:
बेज़ुबां ज़ख्म..
7 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
बहुत सुन्दर .
नई पोस्ट : पंचतंत्र बनाम ईसप की कथाएँ
धन्यवाद राजेंद्र कुमार जी..!! सादर आभार..
धन्यवाद राजीव कुमार झा जी..!!
वाह...लाजवाब
धन्यवाद तुषार राज रस्तोगी जी..!!
दर्द को नया आयाम देते...अतिसुंदर...
धन्यवाद Vaanbhatt जी..!!!
Post a Comment