Saturday, March 22, 2014
'दीवार-ए-रूह..'
...
"पढ़ती हूँ जब-जब..तुमको लिखे ख़त बेशुमार..
नमी दीवार-ए-रूह..जाने क्यूँ उभर आती है..
आज दफ़ना दूँगी..बेसबब यादें..जज़्बात..
परत जाने कितनी..आँखों पे जम जाती है..
ज़िद भर-भर थैले.. परेशां अब न करेंगे..
मायूसी तेरी साँसों में रम-रम जाती है..
दूर रहना मेरा..गर पसंद है तुमको..जां..
वादा निभाने ख़ातिर.. मैं नम जाती हूँ..!!"
...
--मन उदास..अपुन आउटकास्ट..
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ज़िन्दगी..
6 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
बहुत सशक्त कही है गज़ल साफ़ लफ़्ज़ों में
बहुत सशक्त कही है गज़ल साफ़ लफ़्ज़ों में
बहुत हि खूबसूरत रचना प्रस्तुति के साथ , आ० प्रियंका जी धन्यवाद व स्वागत हैं मेरे लिंक पे -
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सादर आभार मयंक साब..!!
धन्यवाद वीरेंदर कुमार शर्मा जी..!!
धन्यवाद आशीष जी..!!
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