Wednesday, June 17, 2015
'रूह की शिद्दत..'
#जां
...
"मेरे प्रिय..मेरे बहुत प्रिय..मेरे सबसे प्रिय..
वक़्त कितना ही मज़बूत जाल बिछाए..आपका और मेरा सामीप्य गहरा रहेगा..
दुश्वारियां बेशुमार आयें दरमियाँ..आपका और मेरा गठबंधन महकता रहेगा..
बैरी हो ज़माना चाहे जितना..आपका और मेरा प्रेम अनिवार्य रहेगा..!!
आप लिखते रहिएगा..मैं पढ़ती रहूँगी..
आप दिल धड़काते रहियेगा..मैं चलती रहूँगी..
आप थामे रहिएगा..मैं बहती चलूँगी..!!
शर्तों से प्यार नहीं..प्यार से शर्त है..
चट्टान-सा अटल है..लक्ष्य मेरा..
मखमल-सा कोमल है..राग मेरा..
गिरफ़्त-सा विराट है..ह्रदय मेरा..!!
जाने कितनी रचनाओं का समागम है..इस एक जज़्बात में..
आप मुझे प्रिय हैं..बहुत प्रिय..सबसे प्रिय..
चलिए न..इस दफ़ा अनुबंध में सिमट जाएँ..
मैं लिखूँ पत्र पोर से..लिखाई आईना हो जाए..!!
रूह की शिद्दत..
फ़र्ज़ का क़ायदा..
मोहब्बत का जाम..
ज़िंदाबाद..ज़िंदाबाद..!!"
...
--मेरी तन्हाई के सौदागर..बोसा स्वीकारें..
Labels:
रूमानियत..
3 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
Uff.. kitna pyaar bhara...
Kisi ko bhi pyaar ho jayega aapse...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (19-06-2015) को "गुज़र रही है ज़िन्दगी तन्हा" {चर्चा - 2011} पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
पारुल जी..
ये तो आपका स्नेह है..:)
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