Monday, November 30, 2015
'कशिश..'
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"मेरे हर उस खालीपन को..भर जाते थे तुम..
उँगलियों से अपनी..किस्सा गढ़ जाते थे तुम..
दरमियाँ होतीं थी..अनकही बातें..औ' कशिश..
चहकता था..कुछ यूँ..रूह का इक-इक पुर्ज़ा..
गर्माहट से अपनी..साँसें निहार जाते थे तुम..!!!"
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Labels:
बेबाक हरारत..
4 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....
हार्दिक धन्यवाद..
vaah vaah ... kyaa baat hai ... behatreen !!!
हार्दिक धन्यवाद संजय भास्कर जी..!!
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