एक 'नैट फ्रेंड' को समर्पित..जिनसे यह लिखने की प्रेरणा मिली..
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"जिसने दिया जितना दाना..
उसका घरौंदा उतना लिया..
कभी इस डाल तो कभी उस डाल..
हर क्षण किसी का शरणा लिया..
राही हूँ..पंथी हूँ..ना कोई ठिकाना..
जो राह मिली..बस चल लिया..
ना किसी नगर की सीमा..
ना किसी देश की तारबंदी..
मानवता की पूँजी हूँ..
रज़ में लोट-पोट..
जीवन का #धरना किया...
संचय करो..या करो प्रवाहित..
अमर हूँ..अमूल्य हूँ..
किया समृद्धशाली..
जिसने मेरा वरना* किया..
गंगा-सा समर्पित..
हिमालय-सा अविचल..
शूरवीरों-सा साहसी..
वीरांगनाओं-सा अडिग..
किया न्योछावर स्वयं को..
जीवन **तरना दिया..
एक डोर में..
पिरो सुसज्जित..
रखना सदैव..
अंतर्मन के समीप..
'विचार' हूँ मैं..
'एक स्वतंत्र विचार'..!!"
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#धरना = पहचान देना..
*वरना = वरन करना/पहनना..
**तरना = पार लगवाना..