Wednesday, May 29, 2013
'पहला पड़ाव..'
...
"राजधानी की यात्रा..
पहला पड़ाव हमारे प्रेम का..
याद है न..??
कल फिर से जा रही हूँ..
स्मृतियों को मिटाने..
चिपकी हैं जाने कबसे..
मीलों दौड़ती सडकों की रोड़ी पर..
सुगंध छुड़ाने..
फैली है जो..
हर वृक्ष की छाल में..
रंग बिसराने..
रमे हैं जो..
नीले आकाश पर..
भूल आऊँगी..
बहा आऊँगी..
अंतर्मन की नीव..
शेष कहाँ मेरा जीव..!!"
...
--- सितम्बर २०११.. याद है न आपको..
Labels:
रूमानियत..
7 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
वाह वाह ...... मिटाने...भुलाने का क्या अंदाज़ पाया है ......मिटानी है वोह स्मृतियों जो चिपकी हैं जाने कबसे.. .....मीलों दौड़ती (यादों की ) सडकों की रोड़ी पर..भुलानी है ....बहानी है वो नीव जिस पर टिका है जीव ( प्रेम का महल ) ......मगर तन में ( हर रोम में ) फैली वो सुगंध ( प्यार की ...अपनेपन की ) को छुड़ाना इतना आसान नहीं है .......अपने मन के पंछी को आज़ाद करने का ये प्रयास ....थोडा कठिन जरूर है मगर नामुमकीन नहीं है ..................!!!
वाह वाह ...... मिटाने...भुलाने का क्या अंदाज़ पाया है ......मिटानी है वोह स्मृतियों जो चिपकी हैं जाने कबसे.. .....मीलों दौड़ती (यादों की ) सडकों की रोड़ी पर..भुलानी है ....बहानी है वो नीव जिस पर टिका है जीव ( प्रेम का महल ) ......मगर तन में ( हर रोम में ) फैली वो सुगंध ( प्यार की ...अपनेपन की ) को छुड़ाना इतना आसान नहीं है .......अपने मन के पंछी को आज़ाद करने का ये प्रयास ....थोडा कठिन जरूर है मगर नामुमकीन नहीं है ..................!!!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (31-05-2013) के "जिन्दादिली का प्रमाण दो" (चर्चा मंचःअंक-1261) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद नयंक साब..
धन्यवाद मयंक साब..
आभारी हूँ..!!
धन्यवाद दर्शन जी..!!
धन्यवाद नयंक साब..!!
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