Sunday, October 2, 2016

'क्रीमी अफेयर..'






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"हाये..
उसकी पहली छुअन से..
मैं भीतर तक घुल गयी..
मिठास थी कुछ ऐसी..
मैं मचलती गयी..

कसमसा मिले जो लब..
कितने प्रवाह ढलती गयी..

हॉट स्टीमी जिस्म..
औ' वो स्याह रात..
एक्ज़ोटिक छाँव में उसकी..
कितने सिफ़र पलती गयी..

शामो-सहर..
इस क्रीमी अफेयर..
कितने दिल मलती गयी..

आह्ह..मेरी कॉफ़ी का..
सबसे अडोरेबल प्याला..!!"


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--पल मस्ती वाले..

Tuesday, September 27, 2016

'मिस कॉल की गाँठ..'






#जां

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"मेरे जीवन के उपन्यास का कलेवर..

पृष्ठ संख्या ११६ पे अंकित..
वो सुनहरा पैगाम..

दृष्टिगत होती..
तुम्हारी नज़र..
खिलता-महकता..
'दिल धड़कने का सबब'..

यूँ तो पाँच साल..
और यूँ पूरी उम्र..

इक पल का सुकूं..
दूजे पे कसक..

पल-पल मुझे संवारना..
रेज़ा-रेज़ा दुलारना..
प्रेम के रूप हैं बहुत..

रोज़ माँगना..
इक गिरफ़्त..
रोज़ हारना..
ज़ालिम हुड़क..

कहो, कितने लफ्ज़ सजाऊँ..
सूती चादर के अलाव..
कितने 'लव-लैटर्स' करेंगे..
फ़ैसले पे बचाव..

३० दिन..१० लफ्ज़..
कुल जोड़ -- ३००..
पूरी हो..इस दफ़ा..
ये मुराद..

रातों के मोती..
मिस कॉल की गाँठ..
रोशन तुमसे..
मेरा दहकता ख्व़ाब..

मेरी अल्हड़ आवारगी..
तेरी कट्टर 'ना'..
आलिंगन..बोसे..
औ' वो बेबस रात..

मेरे केस की सुनवाई..
तेरी ही अदालत में..
मेरे ब्यान..
तेरी ही हिफाज़त में..!!"

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--डिमांड शुड बी इक्यूअल टू सप्लाई.. <3 = <3 है न, #जां..

Monday, September 26, 2016

'जिस्म..मुहब्बत वाला..'






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"दिनभर की भाग-दौड़ में..
उग आते हैं..
नाराज़गी के छोटे-छोटे फ़ाये..

बनते-बिगड़ते काम में..
झुलस जाते हैं..
मासूमियत के प्यारे साये..

छल-कपट के शोर में..
ठिठक जाते हैं..
हँसी के अल्हड़ पाये..

ओढ़ लेती है शब..
थक-हार के चादर..
मैं निकलता हूँ..
अपने जिस्म से..
तेरी रूह तक..

दूसरे प्रहर के ताने-बाने..
वो स्पेशल रतजगे..
तैरते सहर तक..
फ़िर पहन लेता हूँ..
जिस्म..मुहब्बत वाला..

बाँध कमीज़ पर..
निकल जाता हूँ..
उसी भाग-दौड़ में..
हवाले तुम्हारे जिस्म अपना..!!"

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'दहलीज़-ए-रूह..'








#जां

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"आज दिल मचल गया..
कुछ ऐसे..
थाम लो..
अपने आँचल जैसे..

बंधा रहूँ..
वक़्त-बेवक़्त..
कलाई पे..
तेरी घड़ी जैसे..

लटकता रहूँ..
साँस-दर-साँस..
दहलीज़-ए-रूह..
तेरी चेन जैसे..

कस लो गिरफ़्त..
दम निकले..
रेज़ा-रेज़ा..
तेरी आह जैसे..!!"

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--दिल धड़कने का सबब याद आया..

'शिखर..'





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"जीवन की तलाश में..
फिरता रहा..
कितने अधर..

प्रस्फुटित तेरे गर्भ में..
मेरा हर शिखर..

तू समय की धार..
मैं तेरा भँवर..!!"

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Monday, May 16, 2016

'मीठे एहसास'..




#जां
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"सुना है..
तुम 'लव-गुरु' हो..

पल में ही लोगों की मुश्किलें हर देते हो..

कोई ब्रेक-अप हो..
या..
हो इश्क़ में मोराल डाउन..

कोई टीनएजर हो..
या..
मिड २०ज़ के डिलेमा वाला..

कोई अधेड़ तलाशता हो साथी नया..
या..
कोई अपने बिछड़े बीलवेड की यादें संजोता..

सबको कम्फर्ट करते-करते..
अपने एहसास भूल गये..शायद..

रूह के छोर पे..
देखो..उग आये हैं..
कितने स्याह जामुन..

आओ न..#जां..
मैं चखकर देती हूँ..
वो 'मीठे एहसास'..
के ज़बां पे आने दो..

मेरे रस की बूँदें..
मेरी उल्फ़त के निशां..

दिन भर दुनिया से छुपा..
घूमते रहना..चाहे जहाँ..!!"

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--गाढ़े रंग..मुहब्बत वाले..


Tuesday, April 12, 2016

'चलना ही ध्येय हो..'





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"चलते चल, पथिक..
डगर का अस्तित्व..
तुझसे ही होगा..

बाँधते चल, नाविक..
लहर का सत्त्व..
तुझसे ही होगा..

संवारते चल, चितेरे..
महल का तत्व..
तुझसे ही होगा..

ढालते चल, विद्यार्थी..
पहल का रक्त..
तुझसे ही होगा..!!"

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--चलना ही ध्येय हो..प्रतिक्षण..

Thursday, April 7, 2016

'अक्षरों के पल्लवन..'




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"स्मृति-पटल पर..
पोषित अंतर्मन पर..
ओष्ट-धरा पर..
नेत्र-द्वार पर..

अक्षरों के पल्लवन..
स्नेह के प्याले..

गति का मान..
लय का श्रम..
लक्ष्य का भान..

संबंधों के स्वास्थ्य..
माधुर्य से परिपूर्ण रहें..
क्षण-क्षण..
प्रति क्षण..

आभार..मेरे ‪#‎जां‬..!!"

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--स्पर्श-चिकित्सा का नया अध्याय..heart emoticon आज स्वास्थ्य-दिवस है..#जां..

'इस साल की दुआ..'






‪#‎जां‬

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"कुछ रिश्तों की नींव..
बिन मिले ही गहरा जाती है..
प्रत्यक्ष की चाह भी..
लोप हो जाती है..

कुछ पल गहरा जाते हैं..
मिलन की आस..
अधूरी..अधपकी..वहशत..
जीने की प्यास..

#जां..
मेरी रूह पे निशां गहरा रहे हैं..
जाने क्यूँ..तुम्हें ही पुकार रहे..

इस साल की दुआ..
अगले मौसम में खिले..

चाहत की दूरी..
होठों से मिले..

तुम लिख भेजना..
मेरा ड्यू लैटर..
पढ़ जिसे पी लूँगी..
जुदाई का चैप्टर..

बिन मिले..
जुदा कैसे हुए..
बिन मिले..
एक कैसे हुए..!!"

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--दर्द..जाने कैसे-कैसे..

Wednesday, March 30, 2016

'सितारों के दामन..'





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"दफ़न होने को बेक़रार बैठी हूँ..
मय्यत पे अपनी..बेज़ार बैठी हूँ..

चाहा था..बेहिसाब बेख़ौफ़..तुझे..
साया-ए-उम्मीद..हार बैठी हूँ..

फ़िक्र न करना..ए-हमजलीस..
गिलाफ़-ए-रूह..मार बैठी हूँ..

करो रुकसत..ख्वाहिश-ए-सुकून..
सितारों के दामन..उतार बैठी हूँ..!!"

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--प्रिय मित्र की विदाई पे..उठते भाव कई.. वो कह गए, हम लिखते अच्छा हैं..

Monday, March 28, 2016

'क़ातिल आशिक़..'






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"हाथ की लकीरों पे..
खुदा इक नाम था..
जाने ता-उम्र तलाश को..
आया कैसे आराम था..

तुम आये थे क़रीब..
इतना ज़्यादा..
निहारता-संवारता चला..
किस्मत का प्यादा..

नुमाइश-ए-ज़िन्दगी..
गुमनाम आवारा-सा मैं..
फ़लसफ़ा मिला ऐसा..
क़ातिल आशिक़-सा मैं..

आगोश गहराओ..
जलाओ..के बुझाओ..
चिंगारी सुलगाओ..
आओ..और क़रीब आओ..!!"

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--रंग-ए-बिसात-ए-इश्क़..

Friday, March 25, 2016

'चाहत के जुर्माने..'






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"रूह पे चला दे..
तेरे कॉम्पस का..
पॉइंटेड पॉइंट..

खेंच मनमर्ज़ी से..
छोटे-बड़े..
बेहिसाब सर्कल्स..

सहने दे ज़ख्म..
हल्के-गहरे..
सुबहो-शाम..

लिखे थे जो..
वस्ल-ए-रात..
मेरे नाम..!!"

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--चाहत के जुर्माने..

Monday, February 29, 2016

'दौड़-ए-ज़िन्दगी..'


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"वक़्त की आँधी थी..
औ' मैं अकेला..
चलने को मजबूर..
कदमों का रेला..

उठा दिल..
सहलायी रूह..
समेट अपने..
एहसासों का ठेला..

मुमकिन कहाँ..
मसरूफ़ियत यहाँ..
फ़ैला हर दश्त..
अरमानों का मेला..

बिछड़ गए..
यार मेरे..
दौड़-ए-ज़िन्दगी..
पेंच ख़ूब खेला..!!"

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'वीकैंड-ख़ुमार..'


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"मेरे जानेमन..
तेरी हर अदा पे प्यार आता है..
ख़ता पे अपनी ख़ुमार आता है..

साथ को तड़पता हर पल..देखिये..
उनका जवाब एक बार आता है..

मसरूफ़ जानेमन..सुबहो-शाम..
आपको भी हमारा ख्याल आता है..

चलो न..ख़त्म करें ये फ़ासले..
वीकैंड-ख़ुमार बेशुमार आता है..

कस गिरफ़्त..लिपट जायें..
पैग़ाम रूह से ये ही आता है..!!"

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'दोस्ती बचपन वाली..'




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"कभी-कभी बहुत याद आते हो..
दिल के गहरे तार छेड़ जाते हो..

सुनो, मिला करो न आते-जाते..
दिल को इक तुम ही भाते हो..

महके ता-उम्र..दोस्ती बचपन वाली..
दस्तक साँसों पे..लगा जाते हो..!!"

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--सलाम..इस दोस्ती को..

Saturday, January 30, 2016

'वक़्त की खरोंचे..'




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"वक़्त की खरोंचे..
बेरहम मरहम..
काश सहेज सकता..
ये दमख़म..

दोस्ती वाली बातें सारी..
याद रहेंगी उम्र सारी..
दूरियां दरमियां..
रखेंगी आँखें तारी..

फ़ैसला पाबंद..
गर उसका..तो क्या..
दिल में सजेगी..
इक तेरी क्यारी..!"

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Friday, January 29, 2016

'टुकड़े नींद के..'





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"वक़्त संभाले मुझे..
निभाए रवायतें..
खंगालती रही..
बेहिसाब-से हिसाब..

टूट जायें..
रूह के सारे ख्व़ाब..
टुकड़े नींद के..
जिस्म चीरते रतजगे..
औ' लफ़्ज़ों की गाँठ..

कीमत कौन जाने..
आवारा साँसों की..
दर्ज़ हर दरख्त पे..
गुनाह-ए-हसरत..

मैं बिकता..
अंजुमन-अंजुमन..!!"

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