Friday, June 21, 2013
'रूल..'
...
"अच्छा किया जो चले गये..
शर्मिन्दा होते हर तक़रीर..१..
क्या टुकड़े-टुकड़े जोड़ता हूँ हर्फ़..
ख़ुदको समझता बहुत अमीर..२..
लानत है बेखुदी पर जो न पहचाने..
अपनी औकात में लिपटी ताबीर..३..
चल बाँट ले रस्ते अपने-अपने..
रख लेना तू मेरी तकदीर..४..
न आऊँगा लौट के फिर..पहन..
कोई भी झूठी तस्वीर..५..
रख हौंसला,,कहता ख़ुद से..
बढ़ते रहना..ले ये जागीर..६..!!!"
...
--कोई रूल बाँध सकता नहीं उलझी तारों के बेनक़ाब कोनों को..
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बेज़ुबां ज़ख्म..
15 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
आपकी यह पोस्ट आज के (२२ जून, २०१३, शनिवार ) ब्लॉग बुलेटिन - मस्तिष्क के लिए हानि पहुचाने वाली आदतें पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई
धन्यवाद तुषार राज रस्तोगी जी..!!
आभारी हूँ..
धन्यवाद रजनीश के झा जी..!!
बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुतिकरण,आभार।
आपने लिखा....हमने पढ़ा
और लोग भी पढ़ें;
इसलिए कल 23/06/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
धन्यवाद!
सुंदर और बढ़िया
behtreen.
बहुत सुन्दर अभिवयक्ति .
बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुतिकरण,
धन्यवाद राजेंद्र कुमार जी..!!
धन्यवाद यशवंत माथुर जी..!!
देरी के लिए क्षमा, हार्दिक आभार..!!
धन्यवाद अशोक जी..!!
धनयवाद धीरेन्द्र अस्थाना जी..!!
धन्यवाद मदन मोहन सक्सेना जी..!!
धन्यवाद दर्शन जी..!!
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