Tuesday, June 25, 2013

'लबरेज़ सहर..'




...

"आते नहीं अब मिस्ड कॉल्स..
बंद हुआ किस्सा पुराना..

रात्रि के दूसरे पहर..
दफ़अतन..

सेलफोन पर उंगलियाँ..
तेज़ी से थरथराने लगीं..

घंटी गयी..
फ़ोन उठा..
कट गया..

फिर वही नंबर..
आवाज़ सुनते ही..
दिल की धड़कनें..
प्लेन मानिंद भागने लगीं..

कितने रोज़ बाद महसूस किया था..
तुमने मुझे और मैंने तुम्हें..

बन बारिश आँचल गिले-शिकवे तैरने लगे..
लिपट-लिपट पहरेदारों से आज़ादी चाहने लगे..

ख़ामोशी से पैबंद होंठ आने को बेकरार..
हिचकिचाहट रोके थी हर रस्ते के अशआर..

मशक्कत बाद निकला मेरा चाँद..
सहमा..खौफज़दा..मासूम..खूबसूरत..

एक रूह..
दो..नहीं..नहीं..
एक ही जिस्म हैं..
ना कभी होंगे जुदा..

'दिल धड़कने का सबब याद आया'..
'वो तेरी याद थी अब याद आया'..
'एक सौ सोलह चाँद की रातें'..
'एक तुम्हारे काँधे का तिल'..

धीमे-धीमे बालों का सहलाना..
और कस के थामना एक-एक रेशा..

'दे दो ना अपने सारे गम..गिले-शिकवे..'
और तुम्हारा फ़फ़क के रो देना..

आखिरी पहर..
लबरेज़ सहर..

रत्ती-भर प्यार..
बाँहों में यार..

काश..
वक़्त ठहर जाता..
संवारता सिलवटें..

पर..
वादा निभाना है..
अब मुझे जाना है..

इंतज़ार करना..
रिसने ना देना..!!"

...

--लक्ष्य पुकार..
स्वप्न पूर्ण होंगे सारे..
अब देखना हमारे..

13 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...
This comment has been removed by the author.
डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी यह प्रस्तुति 27/06/2013 के चर्चा मंच पर है
कृपया पधारें
धन्यवाद

Asha Lata Saxena said...

उम्दा लिखा है |
आशा

कालीपद "प्रसाद" said...


बहुत खूब !
latest post जिज्ञासा ! जिज्ञासा !! जिज्ञासा !!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद दिलबाग साब..

आभारी हूँ..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद आशा सक्सेना जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद कालीपद प्रसाद जी..!!

दिगम्बर नासवा said...

प्रेम से लबरेज ...
लम्हों की दास्तां ...

Madan Mohan Saxena said...

बहुत सटीक लिखा है ...बेहतरीन भाव हैं

संजय भास्‍कर said...

... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद दिगम्बर नासवा जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद मदन मोहन सक्सेना जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद संजय भास्कर जी..!!