Friday, January 10, 2014
'उस क्षण के गवाह..'
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"मेरे प्रिय..मेरी जां..
आपसे ही ख़ुद को पहचान पायी..आपसे ही अपने वज़ूद के होने का तमगा मिला..!! मेरा क्या था, मेरा क्या है?? मैं जीवन की उपलब्धियों को दरकिनार कर..अपना करियर दाँव पर लगा चुकी थी..क्यूँ आप उसमें साँसें फूँक गए??
मेरे अपने ही मुझसे दूर थे और आप इतने दूर होते हुए भी मेरे अपने..!!
मेरे हर उस क्षण के गवाह..जब-जब मैंने आँखों के समंदर को आपके काँधे पे उड़ेला था.. अपनी गोद में सुला आप मेरी आँखों में गहरे धंसे सपनों के बारीक टुकड़ों को निकाल सहलाते थे मेरा सर.. उस एक 'टाईट हग' से मेरे सारे इन्हिबिशंज़ थक-हार जाते थे..
कैसे आप समझ लेते थे..जो मैं कह भी नहीं पाती थी..??
आज फिर से 'सबब दिल धड़कने का' कुछ कह रहा है.. चाँद की रातें भी रोशनी माँग रहीं हैं '११६' वाली.. और फिर..'बहुत दूर होके बहुत पास हो तुम..'..
वस्ल की रात वाली दुआ अता हो..
नाम यूँ भी बदनाम है मेरा..!!"
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--आपको ही चाहा है..ता-उम्र चाहूँगी..
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रूमानियत..
6 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
समझ वो बात कि जो कही ही न जाती हो ..................................................
वैसे वो साँस तो फूंकता ही रहता है हमारी भावना चाहे जो भी हो किसी के प्रति अपना प्रेम जताने में ये समझ आत्मसमर्पण के लिए बहोत जरूरी है " मेरा क्या था, मेरा क्या है ? तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा " प्रसन्ता मिलती है ..... अपेक्षा भी रहती है मगर क्या दर्द है सीने में कैसे बताया जाये , क्यों रोती है आँखे कैसे समजाया जाये ,
बह रहे जो अश्क आँखों से वो अश्क नहीं है तो वो लम्हा उनसे दूर जाने का, वो कैसे मनवाया जाये
शायद गम न हो उसने यु दूर होने का, बस गम लगता तो है कि क्यों बनाया था उसने अपना जब यु छोड़ जाना ही था, क्यों लोग अक्सर ऐसा करते हैं,पहले करते अहिं वादा फिर अक्सर तोडा करते हैं,क्यों करते है वो वादा अक्सर तोड़ जाने के लिए,क्यों दिखाते हैं ख्वाब वो झूठे इस कदर रुलाने के लिए,क्या कम होते हैं ज़िन्दगी में गम और भी जो दिल तोड़ने वाले अक्सर दिया करते हैं,
जो दर्द है सीने में कोई जान नहीं सकता, होती है चुभन ऐसी कोई कुछ कर भी नहीं सकता, रह रह कर तीस उठती है,रोती है आँख और जुबान सिर्फ उनको ही पूछती है,
जान लेते अगर सब कुछ पहले से, ना रोते आज और न होते ज़िन्दगी मे इतने गम,जो डूबे हैं आज इन ग़मों के सागर में, जान लेते पहले ही उन्हें तो न होते आज इस हालत में ,
जान लेते हम अगर वो देंगे दर्द इस कदर तो ना मिलते कभी उनसे यु अपना समझ कर, बात फिर भी क्यों ना समझ पाए उन्हें , खो गए उनमे और जब टूटा दिल तब होश में आये ,
है गुनेहगार अपने ही किसी और पे इलज़ाम क्यों लगाये ?
हुई है उसे पहचानने में गलती ,उस गलती को छुपाये या फिर सबको बताये ,
रो रही है जो आँखे आज, , क्यों रोती है आपकी आँखे कैसे समझे हम ?,
कुछ छुपाके बताते सीधे शब्द दिल में उतर जाते है फिर न बताने कि , न समझाने कि न मनाने कि कोई जरूरत रहती है वो सब कुछ समझ लिया जाता है जो कभी कहा ही न हो ......... ये भी कहना क्या कम है ?
धन्यवाद नयंक साब..!!
सादर आभार..!!
धन्यवाद यशवंत जी..!!
हृदयस्पर्शी एहसास...!
धन्यवाद अनुपमा पाठक जी..!!
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