Friday, January 31, 2014
'महसूस किया बरसों बाद..'
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"सुनो..बहुत ठण्ड है..नफरत का कोहरा कब से बाँहें पसारे खड़ा है.. वीरान जाड़ा ख़ुमारी लुटा रहा है..!!! बरसाये लाख क़हर..तुम न डरना उस क़ातिलाना हवा से..
मेरी चाहत का कम्बल..मेरी रूह का अलाव..मेरी साँसों की खलिश..मेरे जिस्म की हरारत..बेपनाह मोहब्बत..और हम.. देखना जड़ देंगे एक वार्म कोज़ी सिलवटों का आशियाना..!!!"
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--महसूस किया बरसों बाद.. शब अपनी होने को है..
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रूमानियत..
2 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
you write so well... beautiful thoughts !!
सादर आभार पारुल चंद्रा जी.. :-)
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