Saturday, January 2, 2010
घुटन..
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"ज़ार-ज़ार ख्वाबों को सजाऊँ कैसे..
अश्कों की दहलीज़ को छुपाऊँ कैसे..१
वहशत के शोर में उलझी फिजायें..
घुटन मेरी साँसों की दबाऊँ कैसे..२
अजब है..रिवायत-ए-महफिल..
शिकवा खुदा को दिखाऊं कैसे..३
बारहां..झुलसता रहा लम्हों में..
साए जुल्फ-ए-रंगत बहाऊँ कैसे..४
इक खलिश-सी ज़िंदा है अब-तलक..
रंगत-ए-नासूर फिर..जमाऊँ कैसे..५
नजाकत-ए-दौर..ख़ाक हुआ इस मौसम..
इबादत-ए-शिकन आज सुखाऊँ कैसे..६..!"
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4 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
बहुत सुन्दर!!
फेर ली हैं उसने नजरें इतनी नफ़रत से
प्यार से उसको बुलाएँ तो बुलाएँ कैसे
रत्नेश त्रिपाठी
बहुत खूब
superb
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