Tuesday, January 26, 2010
'सस्नेह आभार....'
...
"ह्रदय में प्रज्जवलित..
रौशनी..
अनायास ही..
भ्रम दे गयी..
करते थे जीवन-यापन..
सरल यात्रा कर गयी..
साँझ के पड़ाव पर..
आस नयी दे गयी..
प्रिय मित्र..
तुम्हारा संबल..
अंतत..
सींच लाया..
पौध को..
तरुवर समान..
स्नेह-रस..
अभिभूत हूँ..
कृतज्ञ हूँ..
समानांतर बिठा..
माधुर्य पाठ पढ़ाया..
सस्नेह आभार..
उदारता सदैव रहेगी..
सुशोभित..!!"
...
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