Thursday, January 31, 2013
'ये अंदाज़..'
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"सही आठ बजे हैं..और तुम्हें मैं याद नहीं..!!! क्या देखा अपना सैलफ़ोन..?? नहीं था ना तुम्हें मेरे SMS का इंतज़ार..अब दिल नहीं धड़कता होगा ना..??? जानती हूँ, सब बदल जाता है..वक़्त के साथ.. क्या इस काबिल भी नहीं थी, कि रह सकूँ ता-उम्र 'आठ बजे की हक़दार'..????
उफ़..बहुत कातिल हैं..तेरे ये अंदाज़..!!"
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बेबाक हरारत..
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