Friday, September 17, 2010
'दिल की तारों पे..'
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"जंग कदीम मिटा दूँ..लगें है दिल की तारों पे जो..
चर्चा मशहूर करा दूँ..जमे हैं साँसों के पारों पे जो..१..
दरिया निभाते हैं..दस्तूर-ए-महफ़िल-ए-हुस्न..
लूट लेना इंसानियत..दफ्न हैं कूचों के चारों पे जो..२..
मुसाफिर हूँ..शायर हूँ..यकीं मानो..रूह-ए-सौदागर हूँ..
कुरेद लो मोती..रज़े हैं समंदर की दीवारों पे जो..३..
फरिश्तें मिलेंगे..लहराती बस्ती के साये..देख लेना..
शुक्रिया वाईज़..रौशन हैं दिलदार की *हारों पे जो..४..!!"
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*हारों = शिकस्त..
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ग़ज़ल..
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