Tuesday, September 14, 2010

'सत्ता की पगडंडियों से.. ढाणियों का सफ़र..'



...


"क्या बदल सकोगे..
विश्वास की चादर का दाग..
क्या मिटा सकोगे..
महँगाई का चिराग..
क्या पहुँचा सकोगे..
संकरीं गलियों में *राग..
क्या लुभा सकोगे..
#बेज़ुबां पत्तियों का दिमाग..

आसां नहीं है..
यूँ सत्ता की पगडंडियों से..
ढाणियों का सफ़र..!!"


...


*राग..= आवाज़..
#देश के अनगिनत प्रतिभाशाली विद्यार्थी..जो राजनीतिज्ञों की विलासता के आगे विवश हैं..

2 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

ओशो रजनीश said...

बढ़िया प्रस्तुति .... आभार
क्या बात है बहुत ही अच्छी पंक्तिया लिखी है .....

हिंदी दिवस की शुभ कामनाएं

एक बार पढ़कर अपनी राय दे :-
(आप कभी सोचा है कि यंत्र क्या होता है ..... ?)
http://oshotheone.blogspot.com/2010/09/blog-post_13.html

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद ओशो रजनीश जी..!!