Wednesday, September 1, 2010

'शब बना दे..'

...


"जिस्म सुलगा दे..
रूह छलका दे..
आज फिर शब बना दे..


ख्वाब-ए-हसरत महका दे..
हयात-ए-शरीक दमका दे..
आज फिर शब बना दे..

जुल्फों के साये लहरा दे..
फासले दरमियाँ मिटा दे..
आज फिर शब बना दे..

सिलवटें गुलों से सजा दे..
ख़त निगाहों से सुना दे..
आज फिर शब बना दे..

रंगीन आँसू पिला दे..
मुझे तुझमें मिला दे..

हाँ..
आज फिर शब बना दे..

काजल तड़पा दे..
आगोश उलझा दे..
आज फिर शब बना दे..

मुद्दत से है ख्वाइश..
आज फिर शब बना दे..!"


...

4 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

संजय भास्‍कर said...

बेहतरीन ग़ज़ल| मकता कमाल का है .......दिल से मुबारकबाद|

vandana gupta said...

ओह ……………बेहतरीन भाव्।

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद संजय भास्कर जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद वंदना जी..!!