Friday, January 29, 2010
'बिखरना.. चाहता हूँ..'
...
"अफ़साने इन दिनों..
मुस्कुराते हैं..
ख्वाब इन दिनों..
चहचाहते हैं..
साहिल इन दिनों..
फुसफुसाते हैं..
परिंदें इन दिनों..
लह्काते हैं..
शायर इन दिनों..
शरमाते हैं..
मौसम इन दिनों..
बुदबुदाते हैं..
रकीब इन दिनों..
कतराते हैं..
नक़ाब इन दिनों..
उलझाते हैं..
मयखाने इन दिनों..
समझाते हैं..
ज़ख्म इन दिनों..
गुदगुदाते हैं..
वाईज़ इन दिनों..
छलकाते हैं..
नज़ारे इन दिनों..
टकराते हैं..
मुद्दत से..
मुरीद हूँ..
फ़क़त..
तुझमें..
बिखरना..
चाहता हूँ..!"
...
6 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
बहुत ही बढिया रचना लगी, लेकिन किन दिंनो ।
वाह क्या खूब फरमाते है .
धन्यवाद मिथिलेश जी..!!
धन्यवाद शरद जी..!!
वाह बहुत खूब लिखा है !!
धन्यवाद कुसुम जी..!!
बस आपका मार्ग-दर्शन मिलता रहे..इसी आशा में...!!
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