Sunday, January 23, 2011

'नासूर-ए-इश्तिहार'




...


"हिज्र की खुशबू से..सिलसिले लिखे जाते हैं..
जिस्म के सौदे कहाँ..रूह में मिले जाते हैं..१..

जीने का सलीका नामंजूर..करे तो क्या..
बारहां..आईने संग से तौल सिले जाते हैं..२..

बाशिंदा हूँ कूचे का..वस्ल का गुल नहीं..
रखना महफूज़..हर नफ्ज़ सौदे खिले जाते हैं..३..

वाकिफ़ हूँ मोहब्बत से..मजबूरी के तोहफों से..
वहशत के रंगों से अंदाज़-ए-महफ़िल हिले जाते हैं..४..

लुफ्त उठाते आसमानी साये..काजल के कतरे..
नासूर-ए-इश्तिहार..ज़र्रे-ज़र्रे मिले जाते हैं..५..!!"


...

0 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..: