Wednesday, January 26, 2011

'बेरब्त वहशत..'


...


"कितने अरमां बह निकले..
रूह के दरिया..
रंजोमलाल..
*बेरब्त वहशत..
पशेमान ख्वाब..!!!"


...
*बेरब्त = बेढंग/बेमेल..

6 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

संजय भास्‍कर said...

ला-जवाब" जबर्दस्त!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद संजय भास्कर जी..!!

Anonymous said...

बढ़िया सीपिका लिखी है आपने!
गणतन्त्र दिवस की 62वीं वर्षगाँठ पर
आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद मयंक साहब..!!

Roshi said...

aaj sabhi rachnayein padi bahut sunder

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद रोशी जी..!!