Monday, January 31, 2011
'शब बना दे..'
...
"जिस्म सुलगा दे..
रूह छलका दे..
आज फिर शब बना दे..
ख्वाब-ए-हसरत महका दे..
हयात-ए-शरीक दमका दे..
आज फिर शब बना दे..
जुल्फों के साये लहरा दे..
फासले दरमियाँ मिटा दे..
आज फिर शब बना दे..
सिलवटें गुलों से सजा दे..
ख़त निगाहों से सुना दे..
आज फिर शब बना दे..
रंगीन आँसू पिला दे..
मुझे तुझमें मिला दे..
हाँ..
आज फिर शब बना दे..
काजल तड़पा दे..
आगोश उलझा दे..
आज फिर शब बना दे..
मुद्दत से है ख्वाइश..
आज फिर शब बना दे..!"
...
Labels:
मेहमां यादें..
2 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
aapki sabhi rachnayein dekhi bahut hi sunder likha hai aapne
धन्यवाद रोशी जी..!!
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