Saturday, January 29, 2011

'महबूब की बाज़ुएँ..'

...


"दुआ से तेरी..
खिल रहा हूँ..
इतर से तेरी..
महक रहा हूँ..
वफ़ा से तेरी..
भीग रहा हूँ..
नज़रों से तेरी..
रंग रहा हूँ..

गुड़ माफिक ताब..
महबूब की बाज़ुएँ..!!"

...

4 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

संजय भास्‍कर said...

किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद संजय भास्कर जी..!!

Anonymous said...

बहुत शानदार शेर अर्ज किया है आपने!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद मयंक साहब..!!