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जगजीत साब..
ना जाने कितनी सर्द रातों और तपते दिनों में गम की स्याही सोख लेते थे..मेरे हर गम को यूँ ही समेट लेते थे.. आपकी आवाज़ का जादू कितनी ही बेवफाई और फ़रेब को नकाब पहना दफ्ना आई..
आज जब आप चले गए..दिल के दर्द कैसे रहगुज़र कर पाऊँगी..राहबर मेरे..चारागर मेरे..आप ही बताएं, कैसे जी पाऊँगी..
...
"ख्वाइश दम तोड़ती रही..
रूह सुलगती रही..
*शब-ए-तार..
क़ैद रहा..
**क़फ़स-ए-ज़िन्दगी..
रिवायत उछलती रही..
हर बाज़ार..
बेनाम इश्तिहार..
***गुमगश्ता वजूद..
रेज़ा-रेज़ा रही..
उल्फ़त बेज़ार..
तुम्हारी मखमली आवाज़..
मरहम लगाती रही..
हर नफ्ज़..
दम फूंक..
बेरंग फिज़ा मचलती रही..
आज जब तुम नहीं हो..
#बेनियाज़ी हस्ती..
##नुक्ताचीं डाले हैं डेरा..
कैसे समेटूं..
रूह का फेरा..!!!"
...
*शब-ए-तार = Dark Night..
**कफ़स = Prison/Cage..
***गुमगश्ता = Lost..
#बेनियाज़ी = Independent..
##नुक्ताचीं = Critic..
..
1 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
काव्य के रूप में यह श्रद्धांजलि हृदय से आई है. इस श्रद्धांजलि में हम सभी साथ हैं.
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