Saturday, January 29, 2011
'कुछ जज़्बात..'
...
"गिरवी रखे थे..
कुछ जज़्बात..
दरीचे के पास वाली..
दराज़ के खाने में..
खुशबू भी लपेटी थी..
उस शज़र..
हर्फ़ जैसे बिखरे थे..
उन हसीं यादों के..
मंज़र..
सिरहाने रखा था..
यादों का पुलिंदा भी..
सबसे नज़रों छुपाकर..
जाड़े में..
जम गयी हो..
शायद..
जुस्तजू की कश्ती..!!"
...
Labels:
बेज़ुबां ज़ख्म..
2 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:
बहुत सुन्दर शब्द चुने आपने कविताओं के लिए..
धन्यवाद हेमंत भरतपुरी जी..!!
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