Sunday, October 2, 2011

'मासूमियत की बौछारें..'




...


"पहाड़ियों में ढूँढ आई..
बचपन की सौगातें..
हँसी की फुहारें..
और..
मासूमियत की बौछारें..
खिलखिला रहा था..
आसमान का आँगन..
झिलमिला रहा था..
बादलों का आँचल..

जी आई..
आज फिर..

अमूर्त भावनाओं की..
अटूट निशानी..
जीवन की..
अमूल्य कहानी..!!!"

...

15 ...Kindly express ur views here/विचार प्रकट करिए..:

रश्मि प्रभा... said...

waah...

Pallavi saxena said...

बहुत बढ़िया ... समय मिले तो कभी आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://mhare-anubhav.blogspot.com/

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

सचमुच! प्रकृति के नैसर्गिक उद्दात्त स्वरुप में ही जीवन का असल व्याप्त है...
सुन्दर अभिव्यक्ति...
सादर..

Unknown said...

बहुत भावपूर्ण गहन प्रस्तुति..सादर !!!

सदा said...

वाह ...बहुत ही बढि़या ।

रेखा said...

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ..

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद उड़न तश्तरी जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद रश्मि प्रभा जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद पल्लवी जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद मयंक साहब..!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद संजय मिश्रा 'हबीब' जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद श्रीप्रकाश डिमरी जी..!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद सदा जी..!!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद रेखा जी..!!

M VERMA said...

बहुत खूब .. जीवन की तलाश जारी है