Monday, December 30, 2013

'धरती-माँ..'






...

"बहुत हुए 'जां' के नाम स्टेटस..आज कुछ अलग होगा..


'वज़ूद..पहचान..ईमान तुझसे है..
शुक्रगुजार हूँ..साँसें तुझसे हैं..

कतरा लहू का..बहा दूँगा..
मेरी शान..ए-वतन..तुझसे है..

पा तुझे ज़िन्दगी है पायी..
रवानी..कहानी तुझसे है..

मकां..दुकां..दो वक़्त रोटी..
चादर-ए-इनायत तुझसे है..

गुरूर क्या करूँ झूठे तन पे..
क़फ़न की दरकार तुझसे है..

पेशानी पे माटी सजे..भारत-माँ..
हर शै की आज़ादी तुझसे है..!!'


धरती-माँ की शान में यूँ ही कुछ शब्द..!!"

...


कृपया बहर..रदीफ़..मतला..मीटर..सब को आराम करने दीजिये आज.. :-)

Thursday, December 26, 2013

'दर्द और आगोश..'






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"कोहरा पंख फैलाए बैठा रहता है..हर रोज़ कहता है, "आओ, तुम्हें तुम्हारी 'जां' से मिलवा लाऊँ दुनिया की नज़रों से छिपा कर.. क्यूँ तड़पते हो दिन-रात..?? जाओ, भर लो ना आगोश में जो तुम बिन जी नहीं सकते..!!"

हमने कहा, "सुनिए, कोहरा महाशय..दर्द और आगोश अब दोस्त नहीं रहे.. हम उनके नहीं हो सके.. शायद, वो भी हमें न भुला सके..!! पर मियाद पूरी हो गयी..!! वक़्त के साथ सब बह गया..जो रह गया वो मैं हूँ..!!! टूटा..बिखरा..बर्बाद..बेज़ुबां..बेगैरत..तनहा..फ़क़त मैं..!!"

मान जाओ, कोहरा बाबू.. कुछ नहीं रखा इन सब में..!! जाओ, अपना कर्तव्य निभाओ..!!"

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--तुम बिन दिल जिंदा नहीं अब..

Sunday, December 22, 2013

'वो मैं था..'






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"सब कुछ जो असंभव हुआ करता था..
आज संभव हो चला..
मैं जिस राह का पथिक न था..
वहाँ राज करने लगा..
मेरा भाव किसने जाना..
मैं रोधक तुम्हारा होने लगा..

न पढ़ सकोगे कभी..
अंतर्मन लिपि..
तुम्हारी दृष्टि में..
अपराधी जो हो गया..

समय का दोष था..
या..
परिस्थिति का रोग..
जो पिसा..मिटा..
वो मैं था..
हाँ..
वो मैं ही था..!!"

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'स्याह दूरियां..'







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"जब-जब WhatsApp पर कोई मैसेज आता है.. वो पल आँखों में कितने सपने सजा जाता है..!! याद है न--'एक सौ सोलह चाँद की रातें..'....'एक तुम्हारे काँधे का तिल..'...

उसी काले तिल का एहसास..तुम्हारी छुअन का वो खूबसूरत लम्हा..रूह को तड़पा जाता है..!!"

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--स्याह दूरियां..बेबस आसमां..

Wednesday, December 18, 2013

'किस्सा..'




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"करीब आना फ़ासले बढ़ाना..
मुमकिन कहाँ..तुम्हें भुलाना..

अधूरी हूँ..अधूरा ही रहने देना..
किस्सा जो हुई..किस्से होंगे..

टूटी कश्ती के किनारे बैठा..
मुर्दे माफ़िक़ मेरा गुरूर ऐंठा..

पिघल रही..बह रही..आज फिर..
सम्भाल लो..मेरे ज़ुल्मी मुसाफिर..!!"

...

'आँखें..'






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"कितने राज़ खोलती है..
कितने समेटती है..

तुम्हारी हर बात..
जाने क्या बोलती है..

मैं सुन भी न पाऊँ..
फिर भी थामे रखती है..

उदास कहूँ या अलहड़..
कितनी अंदर झकझोरती है..

तुम क्या जानोगे..
सच ना मानोगे..

संयोग से मिलना..देखो..
आँखें कैसे पुचकारती हैं..!!"

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Monday, December 16, 2013

'हर्फ़..'





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"मेरी किस्मत..वहशत..तन्हाई..
हर्फ़ रुक जाओ..
कुछ देर तुम ही मेरे करीब बैठ जाओ..
कोई नहीं रहा यहाँ..अब जाऊँ कहाँ..

किस्से मेरे बिकते हर रोज़..
मैं बैगैरत..आवारा रहूँ..
इतनी दुआ अता करना..!!"

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Sunday, December 15, 2013

'ज्वनशील तत्व..'










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"हम कभी-कभी कितने बेबस हो जाते हैं न.. आज चाहते हुए भी किसी की फोटो लाईक नहीं कर सकती, वैसे अच्छा ही है.. दो शब्द अगर तारीफ़ के लिख दूँगी तो अपनापन बढ़ जाएगा और फिर जाने कितने भाव उमड़ आयेंगे..

और फिर..कितने ज्वनशील तत्व उत्पात मचायेंगे..!!!

जीवन-धारा को बहने देती हूँ..
अपनी डगर पर चलती रहती हूँ..
मेरी पसंद-नापसंद से क्या होना है..
मैं अक्सर..यूँ ही कहती रहती हूँ..!!"

...

--कुछ सन्देश जो दिल से दिमाग तक पहुँचने में बहुत समय लगाते हैं..

Thursday, December 12, 2013

'पत्र की पात्रता..'



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"वो मिठास कहाँ..
धैर्य और प्रेम का वो संगम कहाँ..
विश्वास की मजबूत धरोहर कहाँ..

सब बह गया..
समय की धार में..

सुन्दर..मोती-से अक्षर बोलें कहाँ..
पत्र की पात्रता ही सुरक्षित कहाँ..!!"

...

--सुनहरी स्मृतियाँ..

Wednesday, December 11, 2013

'बेदख़ल होतीं राहें..'




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"खुशियाँ भी झूठी हैं..गम तो अपने रहने दो..!! सुनो, चाहे जितना दम लगा लेना..मुझसे न ले सकोगे अपनी रूह का हिस्सा..जो सिर्फ मेरा है..और ता-उम्र रहेगा..!!"

...

--बेदख़ल होतीं राहें..

Tuesday, December 10, 2013

'साज़..'





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"मेरे हाथों में जमा है अब तलक..
उसके नर्म हाथों का एहसास..

आँखों में गाढ़ा है अब तलक..
उसकी छुअन में लिप्त साज़..

कुछ एहसास..साज़..पिघल हुए..
नश्तर-से प्यारे..नासूर-से ख़ास..!!"

...

--मियाद..साहिल..सब बेमाने..

Monday, December 2, 2013

'अनुभूति का वरदान..'


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"गोलार्ध से बहता अथाह समंदर मेरे महासागर को नयी दिशा दे रहा है.. आओ, थाम लो मेरा समर्पित जीवन और संचालित होने दो जीवन-प्रणाली..!!! जानती हूँ..कि तुम ही जानते हो मेरी व्यथा..!!"

...

--अनुभूति का वरदान..रख लो मान..

Sunday, December 1, 2013

'तुम परिंदे हो..'




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"ये कैसी सज़ा मुकरर की..
खबर थी तुम्हें..

तूफां के बेशुमार पैमाने छीलते हैं हर नफज़ रूह मेरी..
उधेड़ते हैं झूठे-फ़रेबी रिश्ते तहज़ीब के फेरे..
मलते हैं नमक नासूर पे..मौसम घनेरे..
जड़ते हैं ख्वाहिशों पे इल्ज़ाम हर सवेरे..

तुम भी चले गए तो..
बिखर जाएगा वज़ूद..
सुलग जाएगा हर अंग..
टपकेगी हर रात छत..
उखड़ेगी हर पल वक़्त की सुई..

खैर..

तुम परिंदे हो..
जहाँ मर्ज़ी जाना..
मानता हूँ तुम्हें..
चाहे भुला जाना..!!"

...

--संडेज़..वर्स्ट हिट्स..

Saturday, November 30, 2013

'असीम उत्साह..'






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"रंग अब तक सूखे नहीं..
दो बरस से अधिक समय बीत गया..
अंतस में जमी कोमल चादर की पत्तियाँ..सींचती हैं सुबह से साँझ तक..
बल के साथ असीम उत्साह भी..

जीवन के पथ जब विस्तार माँगने लगे हैं..बिछुड़ना आवश्यक हो चला है..
समय के वेग के आगे नि:शब्द और स्तब्ध हैं सारे मौन और प्रायोगिक पारितोष..!!

समय और स्मृति..
अथाह हो तो भी क्या..
अपूर्ण होती है सुगंध..
पुष्प की पंखुड़ियों की छाया के बिना..!!"

...

--शांत..निर्मल क्षण जीवन का बोध कराते हैं..

Thursday, November 28, 2013

'ओढ़ लें..'













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"मेरी जां..

तुमसे ही सुबह होती है..
तुमसे ही शाम..

जिस दिन सोचूँ..न करूँ परेशां..
उस दिन ही होते हो..
तुम सबसे ज्यादा परेशां..

ऐसा क्या है हम दोनों के बीच..
लेता है रंग जो स्याह अंधेरों के बीच..

पहर सारे रात-भर रोशनी मंगातें हैं..
हमसे गरमी के सारे अलाव जलाते हैं..

सूत की चादर और सिलवटों के लिहाफ़..
सजाते हैं हमसे..उल्फ़त के खिताब..

पोर से रिसते बेशुमार टापू..
सीखा हमसे है होना बेकाबू..

आज़ादी का जश्न तेरी बाँहों में..
गिरफ़्त का सुकून तेरी आहों में..

राज़ तेरे-मेरे..दांव पे ज़िन्दगी..
आ ओढ़ लें..रूह की दीवानगी..!!"

...

--कुछ ख़त जो भेज न पाए उन्हें..

'दर्द के स्याह प्याले..'




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"मन बहुत उदास है आज..
तुम जो नहीं हो पास..

फ़रक अब होता नहीं..
तंज़ कोई कसता नहीं..

चली जाऊँगी दिल से..
ना ढूँढना हर तिल में..

न आओगे जानती हूँ..
सताया है..मानती हूँ..

न आये पैग़ाम समझ लेना..
किस्सा हुआ तमाम जान लेना..!!!"

...

--दर्द के स्याह प्याले..

Friday, November 22, 2013

'लकीरों की चाहत..'










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"तुम मेरी ज़िन्दगी का नहीं..मेरा एक अटूट हिस्सा बन चुके हो.. हर नफ्ज़ मुझमें शामिल रहते हो..कहीं भी जाऊँ, साँसें महकाते हो..कितने ही गहरे हों स्याह रात के साये, अपनी बाँहों में छुपा दर्द पिघला देते हो..!!!

आओ, उड़ जाते हैं भुला दुनिया..रवायत.. महसूस करते हैं लकीरों की चाहत..!!"

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Thursday, November 21, 2013

'बेइंतिहा मोहब्बत..'




>




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"इक तेरा जिस्म..
इक मेरी रूह..

रूह का जिस्म..
जिस्म की रूह..

मेरा क्या..
सब कुछ तेरा..

तेरा क्या..
जो कुछ मेरा..

बंधन सदियों पुराना..
पुराना-सा इक बंधन..

पोर की गर्माहट..
गर्माते पोर..

सुलगती आहें..
आहों में सुलगती..

बाँहों की गिरफ़्त..
गिरफ़्त में बाँहें..

अर्धचक्र में ख़ुमारी..
ख़ुमारी से अर्धचक्र..

इक तुम जानो..
इक मैं जानूँ..!!!"

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--बेइंतिहा मोहब्बत करते हैं हम आपसे..

'तुम..मैं..'





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"खुशबू..
सुगंध..

याद..
स्मृति..

जज़्बात..
भावना..

नक़्श..
चिन्ह..

तुम..
मैं..

क्षितिज..
उफ़्क..

नशा..
ख़ुमार..

प्रिय..
जां..

आत्मा..
रूह..

मैं..
तुम..!!"

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--इत्र..बाँहें..आलिंगन..पाक..नफ़्स..बख्त़..

Sunday, November 17, 2013

'समर्पण की खुशहाली..'





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"जीवन की परिभाषा ऐसी..
किसने बनायी है..
क्यूँ बेटी अपने घर से ही..
हुई परायी है..

काश! समझते जो बनाते..
ताने-वाने..
जीवन में समर्पण की खुशहाली..
एक वो ही लायी है..!!"

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'भारत-माँ..'




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"सर जी..आप सदैव सत्य लिखते हैं..
देश की राजनीतिक बीमारी पर तीर कसते हैं..

आज मुझे..ज़रा ये भी तो बताइए..
कितने यहाँ आपकी-मेरी बात सुनते हैं..

क्यूँ उनको असर होता नहीं..
शहीद उनका कोई होता नहीं..

क्या फितरत हो चली राष्ट्र-नेताओं की..
बिन पैसे कुछ होता नहीं..

आखिर कब तक ये किस्सा चलेगा..
आखिर कब तक इन्साफ बिकेगा..

न कल कुछ हुआ है..ना आगे कुछ होगा..
६६ वर्ष बाद भी असह्य-सा देश-ह्रदय होगा..

चीरते हैं अपने ही कुछ पाक-पुजारी..
कितनी रातें सैनिकों ने जागे गुजारीं..

कौन लिखेगा ऐसी क़ुरबानी..
बाकी कहाँ खून में रवानी..

शर्मिंदा हूँ..न रख सका भारत-माँ की लाज..
ए-माँ..गुनाह मेरा भी है..न करना मुझे माफ़..!!"

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'नाराज़ हूँ आपसे..'






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"जाइये..नाराज़ हूँ आपसे..नहीं करनी कोई बात..!! मेरे किसी सवाल का जवाब नहीं देते..अब, जब तक आप हर सवाल का जवाब विस्तार से नहीं देंगे..मुझे कोई और बात नहीं सुननी..!!!!

वैसे भी, २ दिन बाद तो अगले १० दिन तक नहीं नहीं मिलेंगे मेरे निशां.. शायद, बढ़ भी जाए समय की ये अल्प-अवधि..!!

"जानते थे हम..
न होगी सुनवाई..
जाने क्यूँ फिर..
आस लगाईं..!!"

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--रूह सैडी-सैडी..

'माँ का लाल..'






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"जाने कितने असंतुष्ट हुए..
जाने कितने शत्रु होंगे..
सोचूँ गर सबके लिए..
पूरे न कभी स्वप्न होंगे..

इसीलिए बढ़ता गया..
थकता गया..चलता गया..
न शब्द थे..न कोई सहाय..
अपना विकास करता गया..

अधिकार मेरा है और रहेगा..
कर लेना तुम सारे जतन..
अपनी माँ का लाल हूँ..
मिट आया मैं अपने वतन..!!!"

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Tuesday, October 29, 2013

'गिरफ़्त..'








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"तेरे दिल में बसता हूँ..जानम..
तेरी हर साँस में सुन शोर मेरा..
करने दो एक बार फिर..
इक कोशिश नाकाम-सी..
क्या बांधेगा रवायतों का टोला..
तेरी गिरफ़्त में क़ैद..
मेरी हर आज़ादी है..!!"

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'प्रार्थना..'





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"हर पल ख़ुदको नम रखना..
पास न कोई गम रखना..
जानते हैं वो अंतर्मन की बातें..
प्रार्थना में अपनी दम रखना..!!"

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Sunday, October 27, 2013

'आठ..'





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"जां..आज कितने दिनों बाद 'आठ' बजे हैं.. जैसे वक़्त रुक गया था न इस दरमियां, जब थी दुनिया दरमियां..!!

चलो, आज शब न आने दें किसी को दरमियां.. वक़्त नापे ख़ुद वक़्त को..और..वक़्त ही ना हो दरमियां..!!"

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--थॉट एट 'एट'..

Friday, October 18, 2013

'वीकैंड मेनिया..'





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"क्या तुमने सुनी हैं मेरी धड़कनें कभी..
सुलगे हो अंगारों की सेज पे कभी..
दहाड़े मार-मार रोये हो कभी..
रात भर ख़त लिखते-मिटाते रहे हो कभी..

नहीं न..

फिर तुम समझ नहीं सकते..

मेरी रूह की गहराई..
मेरी इबादत का जुनूं..
मेरे जिस्म के निशां..
मेरे पोरों की गर्माहट..

जाओ..

और भी हैं..
महफ़िल में तुम्हारे..

इक हम नहीं..
तो गम नहीं..!!"

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--वीकैंड मेनिया..

Wednesday, October 16, 2013

'स्याह जज़्बात..'





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"सफ़र की पहली मंजिल..
हमसफ़र की दूसरी दहलीज़..
दरख्त की तीसरी रहगुज़र..
कागज़ की चौथी निशानी..

सुर्ख़ सैलाब सिमट जायेंगे..!!"


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--स्याह जज़्बात..रूह की सबसे नीचे वाली बैंच पर..

'प्रेम के अर्थ..'






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"क्या प्रेम में मिलना ही सब कुछ है..?? इसकी अनुभूति स्वयं में इतनी प्रबल है कि किसी और व्यक्ति या वस्तु विशेष का कोई स्थान शेष ही नहीं रहता..कोई रिक्तता का प्रश्न ही नहीं..!!! जाने क्यूँ..कुछ जन इस 'प्रेम' के इतने अर्थ कहाँ से ले आते हैं..??

वैसे भी, जीवन में पाना ही सब कुछ नहीं होता.. भोजन के स्वाद का सही माप तो दूसरे को चखा कर ही ज्ञात होता है.. है ना..??"

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--सिली पीपल..

Wednesday, October 9, 2013

'जिस्मों की रीलें..'







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"इस रूह से उठा..
उस रूह चला..
फ़ासले पाटता कैसा गिला..
जो तुम नहीं कोई ख्वाइश कहाँ..
मैं दीवाना..आवारा..
दश्तो-सहरा बिखरता रहा..
चल उठायें तम्बू की कीलें..
जाने कबसे पुकारती जिस्मों की रीलें..!!"

...

Sunday, October 6, 2013

'कभी..'








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"खलती है कमी इक तेरी..
रूह पूछती है सवाल कई..
किसका जवाब दूँ..
किससे राह पूछूँ..
कौन आयेगा यहाँ कभी..

मर्ज़ी इक तेरी..
दहशतगर्दी इक मेरी..
साँस की डोरी..
कच्ची रही..
यूँ ही..
क्या समझेगा कोई कभी..!!"

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Saturday, September 28, 2013

'तोहफा..'








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"सुनो जानां..

मेरा बर्थडे आने वाला है..तुम्हें याद है न..??? इस बार मैं तोहफा देना चाहती हूँ..इक ऐसा तोहफा जो तुम अपनी रूह में..हर पल खिलता-पनपता पाओगे..सजाओगे जब भी ख़ुद को आईने के सामने..नज़रें मेरी ख़ुद पर ही पाओगे.. छुओगे जब कभी दरिया को..छुअन मेरी ही पाओगे.. सहलाओगे जब कभी सिर..मुझे ही अपनी गोदी में पाओगे.. बाँधोगे कलाई पर जब कभी वो घड़ी..वक़्त मेरा ही पाओगे.. निभाओगे रिश्ते जब कभी..हर शख्स में इक मुझे ही पाओगे..!!!


इंतज़ार करेंगे हम-तुम उस शब का..जब से गिरफ़्त में ख़ुद को कसा पाओगे..!!! जानती हूँ, तुम चाहते हो..मैं भर लूँ तुम्हें बाँहों में और बहते रहें बरसों-से क़ैद अश्क सारे..!!"

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---बर्थडे मंथ बस आने को है..

Tuesday, September 24, 2013

'मेरे रंगरेज़..'





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"जा रंग ले..
खूं से रूह के लिबास अपने..

यूँ भी मैं शामिल रहूँगा..
हर अल्फ़ाज़ में तेरे..

बहुत गहरे हैं..
चाहत के घेरे..
ना टूटेंगे..
ये चंद फेरे..

जा..मेरे रंगरेज़..
रंग ले..

मेरे जिस्म से..
वफ़ा के माने..
ना मिलेंगे..
कोई हमसे बेगाने..!!"

...

Monday, September 9, 2013

'क्षमा-याचना..'

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"पर्वाधिराज पर्युषण जी के आगमन पर मन सदैव उल्लासित रहता है..अनंत-काल से एकत्रित अष्ट-कर्मों को क्षय करने का सु-अवसर मिलता है..!!! और समापन पर एक विशेष उपहार--'संवात्सरिक प्रतिकमण' करके समस्त प्राणी-मात्र से क्षमा माँगने का दुर्लभ संयोग, जो अन्य दिवसों में संभव नहीं..

चौरासी लाख जीव-योनियों से हाथ जोड़कर मन-वचन-काया द्वारा हुई अनगिनत त्रुटियों के लिए क्षमा-याचना करते हैं..खमत-खामना..!!!"

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Saturday, August 31, 2013

'परवाह..'

...






...


"अब परवाह..
ना करना..
जीना सीख..
रही हूँ..
तुम बिन..

यूँ भी..
हर पल..
बोझ हूँ..
तुम्हारे लिए..

हसरत..वक़्त..
ज़ाया करती..
जाने कितने..
फ़ोन करती..

ना होगी..
कोई रुसवाई..
खुदपर अब..
लगाम लगाई..

ना करुँगी..
अब परेशान..
रखना तुम..
अपना ध्यान..!!"

...

--जाने कहाँ से ये हर्फ़ आ गए..

Wednesday, August 28, 2013

'मंजिल..'






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"कभी-कभी बहुत लम्बी हो जातीं हैं राहें..मंजिल बारहां रूह से टंगी रहती है..!!"

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--काश तुम समझते उलझनों की उलझन..

Saturday, August 24, 2013

'असंख्य पत्ते..'





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"कैसे टूटे हैं शाख पे बैठे असंख्य पत्ते..चिपके हैं तने से फिर भी उधड़े हैं..!!!"

...

--हक़ीक़त-ए-ज़िन्दगी..बेयर ट्रुथ..


Friday, August 16, 2013

'ज़ालिम नैटवर्क..'






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"तलाशती रही..
यहाँ-वहाँ..
इधर-उधर..
ऊपर-नीचे..
तुम कहीं न मिले..

SMS कर पूछा..
'कहाँ-कहाँ ढूँढा आपको..'

जवाब कुछ यूँ आया..
'अपने दिल में नहीं देखा होगा..'

निगाहें जाने क्यूँ मुसकायीं..
मानो बांछें खिल आयीं..

लिख भेजा हमने भी..
'हाँ, वहाँ ही अक्सर भूल जाती हूँ..'

उड़ता-उड़ता जवाब आया..
'Careless Fellow .. :P '

हम भी थोड़ा इठलाये..
'अच्छा जी..(ढेर सारे ;-) :P smileys लगाये)'

बैठे हैं अब तलक इंतज़ार में..
ज़ालिम नैटवर्क..हाय कितना सताये..!!"

...



Thursday, August 15, 2013

'ए-जां..'





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"मेरी आज़ादी का जश्न तेरी गिरफ्त में है..ए-जां..!!"

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Tuesday, August 13, 2013

'सरसराहट..'



...


"लौटा सकोगे..

करवट की सिलवट..
सिमटती आहें और बाँहें..
गर्माहट और सरसराहट..
तपती रूह..सुलगते जिस्म..

इंतज़ार करुँगी..

शबाब के जवाब का..
अलाव के बहाव का..
कंबल के संबल का..!!
प्यार के अधिकार का..!!"

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--दफ़अतन चली पुरवाई..फैली हर ओर तन्हाई..

'जवाब..'



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"लिखने की उम्र गुज़रती है क्या..?? बहुत सोचा..इस ताल के राग के बारे में.. कैसा सवाल उठा आज..??? सब परेशां हुए जा रहे हैं..गली-गली ढूँढ रहा जवाब..!!!"


...


--बारिश के दुष्प्रभाव..

'दरकार..'



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"दहलीज़ थी इक..
दरमियां सफ़र बेशुमार..
सिमटी रही फ़क़त..
ज़िन्दगी की दरकार..!!"

...

Monday, August 5, 2013

'रंगों की टोली..'



...

"ज़िन्दगी की शान में गुस्ताख़ी हो जब कभी..
थाम लेना आके तुम वहीँ..
मुश्किलें सैलाब से लबरेज़ आएँगी बहुत..
गिरफ्त कस देना तुम वहीँ..
ज़ालिम होंगी रवायतें और स्याह उजाले..
जड़ देना छल्ले तुम वहीँ..
छाई हो वीरानी और फीकी रंगों की टोली..
मल देना चाहत तुम वहीँ..
मांगती हों मौहलत आंसुओं की बेनूरी..
चिपका देना नक्श वहीँ..
बरबाद हो आशियाना और नसीब बे-लिबास..
पिघला देना लज्ज़त वहीँ..!!"

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Sunday, July 28, 2013

'हरियाली..'




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"छाई हर ओर हरियाली है..
सावन की झड़ी निराली है..

हाइकू से चमकी हर डाली है..!!"


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'राष्ट्र-प्रेम-वेतन..'






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"सुंदर रूप से हुआ विवेचन..
सत्य मन में है अवचेतन..

कहाँ-कहाँ जायेंगे बाँध इसे..
सस्ता हुआ राष्ट्र-प्रेम-वेतन..!!!"


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Saturday, July 27, 2013

'राष्ट्र के नाम..'




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"ज़िन्दगी की एक किताब..
मेरे राष्ट्र के नाम..

भ्रष्टाचार..छल-कपट..
हर सेवक का व्यापार..

अपनी झोली भरते जाते..
झूठे वादे हमसे निभाते..

काला धंधा जिनका थोर..
बटोरते धन हर ओर..

नित नये व्यक्तव्य सुनाते..
अमल कभी न कर पाते..

कौन सुने जनता की पीड़ा..
हर कान जड़ा जो हीरा..

खाद्य-सुरक्षा कैसी योजना..
बंद करो घाव कुरेदना..

आखिर कब तक जालसाजी..
बहुत हुई ये मनमानी..

नहीं रुकेंगे..नहीं झुकेंगे..
तस्करों से नहीं डरेंगे..

अधिक अन्धेरा छा गया..
आम आदमी जाग गया..

संभल जाओ..ए-नादानों..
ढोओगे पत्थर-पत्थर खादानों..

कर दो समर्पण जो चुराया..
देगी भारत-माँ माफ़ी की छाया..

स्नेह से जो गद्दारी हुई..
स्वाँस तुम्हारी भारी हुई..!!"


...

'शंखनाद..'





...


"शंखनाद का जिम्मा है..
देश-व्यवस्था का हल्ला है..
चलो, उठो अभी करें प्रयास..
करना होगा हर गली अभ्यास..
भ्रष्टाचार, छल-कपट, बंद करो..
अपने घर से ही शुरुआत करो..!!!"

...

Thursday, July 25, 2013

'ज्ञान..'




...


"कंकर बहुत थे राह में..
सो जूते पहन लिए..
जब थक गए वो थपेड़ों से..
हमने कंधे पे लाद लिए..

अब जिद करते हैं सुबह-शाम..
चाहिए पुराना मुकाम..
यूँ मिलता नहीं..स्मरण रहे..
पूजनीय गुरूजी से ज्ञान..!!"

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Monday, July 22, 2013

'आदरणीय गुरुजनों को कोटि-कोटि नमन..'



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गुरुजन समक्ष कृतज्ञता ही प्रेषित कर सकती हूँ..!! उनका सार और ज्ञान ही जीवन-रुपी नदिया पार करता है..!!!

आज की अनूठी जीवन-प्रक्रिया में आश्चर्यजनक कहानी बनतीं हैं..वैसा ही अद्भुत ज्ञान हर राह पर बहता मिल जाएगा..परन्तु सत्य और सर्वोत्कृष्ट ज्ञान कठिन तपस्या, अनुशासित समर्पण और अभ्यास..परम आदरणीय गुरुजनों से ही प्राप्त होता है..!!

"अहो! अहो! श्री सद्गुरु..
करुणासिंधु अपार..
आ पामर पर प्रभु कर्यो..
अहो! अहो! उपकार..!!"..

"ते जिज्ञासु जीवने..
थाय सद्गुरुबोध..
तो पामे समकितने..
वरते अंतरशोध..!!"

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-- परम कृपालु आदरणीय गुरुजनों को कोटि-कोटि नमन..!!

Sunday, July 21, 2013

'सुंदर ख़्वाब..'



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"क्यूँ इतनी हिम्मत नहीं रखते कि मुझसे ही कह सको..मैं तुम्हारे लिये नहीं..!!! रेज़ा-रेज़ा कहर ढाते हो, क़यामत का इम्तिहान लेना बंद करो..वरना, जल्द ही साँसें चुप हो जायेंगी..!!"

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--कभी-कभी यूँ भी लिखे जाते हैं शब्दों के सुंदर ख़्वाब..

Wednesday, July 17, 2013

'तखल्लुस..'





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प्रिय..

तुम क्या गए, मेरी ज़िन्दगी ही बदल गयी..दिन की खुरदुरी मीठी धूप और शाम की मखमली चाँदनी सब अपना वजूद खो बैठे..!!! निशाँ तुम्हारे इस जिस्म पर खुद को सहलाने लगे..रूह पे काबिज़ तुम्हारी साँसें थरथराने लगीं..

'जुदा हुआ खुद से..
जिस रोज़..
वक़्त ये ही था.
ना दरिया सूखा था..
ना नासूर उफ़ना था..

फिर यूँ हुआ..
ज़िन्दगी की रेल में..
चल पड़े रिश्ते..
और मैं छूट गया..!!!'

जाओ..खुश रहना..आबाद रहना..!! तुमसे रोशन हैं मजलिस बेशुमार..

नाम भी नहीं रहा..तखल्लुस लिखा तो उंगलियाँ उठ जायेंगी..

चलता हूँ..!!

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--मापने की मशीन की आवाज़..

Sunday, July 7, 2013

'क्यूँ..'



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"क्यूँ ख़्यालों में आते हो..
जानते हो आवारा हूँ..

क्यूँ प्यार बढ़ाते हो..
जानते हो ख़ानाबदोश हूँ..

क्यूँ पाबंदी हटाते हो..
जानते हो बदनाम हूँ..

क्यूँ दांव लगाते हो..
जानते हो नाकाम हूँ..

चले जाओ..

क्यूँ वक़्त लुटाते हो..
जानते हो गुमनाम हूँ..!!"

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--यूँ ही..कभी-कभी..

Saturday, July 6, 2013

'डेट..'




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"बारिश की ज़ालिम बूंदों से..
जिस्म सहलाते हो..

अल्हड़ सुबह पर सुरूर..
जाने कैसे चढ़ाते हो..

तल्ख़ धूप की सरसराहट..
फ़क़त रूमानी बनाते हो..

भीगी शाम और आवारगी..
बेशुमार रंग सजाते हो..

शब..महबूब..लब-ए-शीरीन..
क्यूँ..हसीं कहर ढाते हो..

ख़त्म करो मौसम-ए-हिजरां..
बोलो..'डेट' पर कहाँ बुलाते हो..!!"

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---आँठवी बारिश..

Tuesday, July 2, 2013

'शरणागत..'




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"समर्पण..
अद्भुत..
भाव..

शरणागत..
हूँ..
नाथ..

दुर्गुण..
दूर..
करो..

स्वीकारो..
मोहे..
आज..!!"

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Sunday, June 30, 2013

'शोहरत के मुहताज़..'



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"कुछ तीस रोज़ बाकी हैं..मेरे वादे का शायद पहला फेज़ पूरा हो जाए..शायद आपकी हसरतें मुझ तक पहुँच जायें..इल्म हो जाए इन धमनियों को कि इस कैनवस पर कभी किसी और की कोई भी तस्वीर नहीं लग सकती..!!! रेत की स्याह लकीरों पे रोशन इक वजूद तेरा..ता-उम्र मुझपर रेशम-सा झरेगा..

'आठ' बजे के दर्द का रिसना आपके 'नाम' रहेगा..हिसाब-किताब तो मुझसे ज्यादा आप ही करते हैं न..!!!

आपकी सख्तियाँ बरबस ही मेरे मन की हंसी चुरा लें गयीं..पर LHS मेरा इंतज़ार करता है, जानती हूँ..और आप भी इस सच से वाकिफ़ हैं..!!! हैं ना?? मेरी उँगलियों के पोर तरसते हैं उन घेरों के लिए..मेरी साँसें आपकी गर्माहट बखूबी जानतीं हैं..!!!!

आज बार-बार पूछती रही ख़ुद से..'आपका और मेरा रिश्ता क्या है, आखिर??'...सारे जवाब दरिया में क़ैद अपनी आजादी की राह देख रहे हैं..!!!"

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--शोहरत के मुहताज़ सिलवटों के सौदागर..